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कविता

साहस

अमरसिंह रमण


खडे़ शान से रहना अच्‍छा घायल शीश उठाए
हिम्‍मत के लिए ठीक नहीं है, रखना शीश झुकाए

यदि आजादी से अपनी है, हमें जरा भी प्‍यार
तो खुशी से स्‍वीकार करें चाहे तोहमत लगे हजार

देश प्रेम के साथ स्‍वार्थ की बात नहीं चल सकती
सूर्य चमकता रहे अगर तो धूप नहीं ढल सकती

बुरे, भले सब इंसानों की मना रहे हैं खैर
हमें बुराई से नफरत है न‍हीं बुरे से बैर

करते प्‍यार देश से हैं हम और देश के जन से
छल-कपट को दूर हटाकर सेवा करेंगे तन-मन से

यही कल्‍पना है अपनी और यही है आशा-विश्‍वास
कोई कहीं से भी आकर क्‍यों बनाए हमारा तमाशा।।

 


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